
आज फिर कुछ यादों ने दस्तक दी है,
सावन के साँवरे बादलों ने,
जब बारिशों के आने की आहट दी है,
आज फिर कुछ यादों ने दस्तक दी है ।
हरी-हरी घास, और हरे पत्तों ने,
फ़िज़ा को एक रुहानी सी रौनक़ दी है,
आज फिर कुछ यादों ने दस्तक दी है।
जैसे कल ही की बात हो,
बम्बई की सड़कों पे हम,
बारिश की फुहारों के संग,
हाथों में हाथ लिए,
एक छाता साथ लिए,
भीगते चलते थे हम,
यूँ ही गुनगुनाते हुए,
नज़रों से नज़रें मिलाते हुए,
आज फिर बारिशों का मौसम आया है,
और कुछ यादों ने दस्तक दी है,
हाँ, कुछ उम्र बीत गयी है,
फिर भी- – – – – – – –
आज फिर कुछ यादों ने दस्तक दी है ।
©चित्रांगदा शरण
©Chitrangada Sharan